मन मयूर आज मेरा बोल उठा
देख के गहरे नयन उसके
कंही डूब ना जाऊं इनमें मैं
दुनिया पागल है पीछे जिसके
उसकी कोमल मुस्कान को देख
मेरा मन का पंछी ये कहता
कह दूँ उससे अपनी दिल की बातें
लकिन फिर भी ये दिल जाने क्यों डरता
फिर अगले ही पल सोचती हूँ
की छोड़ दूँ ये कायरता
कह दूँ उससे आज जो कहना
की तू तो हर वक़्त साथ रहता
अनजाना बन कर आया था वो
इस दिल में कुछ इस कदर बस गया
जाने कब वो अपना लगने लगा
अपनी यादों का सिलसिला छोड़ गया
मैं ना देखूं जब जब उसको
मेरा चंचल जिया मचलता है
और देखे जब जब किसी और को
मेरा रोम रोम जल उठता है
जब भी उससे मुलाकात होती है
तब वो घडी जन्नत सी होती है
पर दूर उसको जाते देख
ये जन्नत भी कयामत क्यों लगने है
जब सामने वो मेरे आये
मेरे नैना कतराने लगते है
जब दूर वो मुझसे चला जाये
मिलने की आस लगते है
जब मिलती हूँ उससे
तो कुछ नहीं कह पाती हूँ
क्या मैं शर्माती हूँ
नहीं श्याद अपना हाल नहीं बता पाती हूँ
इसको प्यार कहूं या दीवानापन
या फिर उस पागलपन की हद्द कह दूँ
चाहत की शुरुवात कहूं
या मदहोशी का नाम दे दूँ
तुम इस क़द्दर समाये हो दिल में
शब्दों में बयान न कर पाउ
जब सामने तुम मेरे बैठोगे
तो शायद तुमको समझा पाऊं
तो शायद तुमको समझा पाऊं